मेकेनिकल इंजीनियर छोड़कर बने हाईटेक किसान, मशरूम के उत्पादन से मिली सफलता


मशरूम से बना रहे बिस्किट, पापड़, आचार, चेन्नई स्थित एनएबीएल लैब से मिला सर्टिफिकेट, बनाया अपना खुद का ब्रांड, अब दूसरों को भी दे रहे रोजगार

रायपुर : राजनांदगांव के एक छोटे से गांव के रहने वाले कुणाल साहू के मेकेनिकल इंजीनियर से किसान बनने की कहानी दिलचस्प है. कुणाल ने अपनी आर्थिक तंगी और कमजोरियों को पीछे छोड़ते हुए अपने नवाचार और प्रयोगों से अनोखा उदाहरण पेश किया. ना सिर्फ खुद के लिए बल्कि अब दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं.

कुणाल के वर्ष-2018 में भिलाई के रूंगटा कालेज से इंजीनियरिंग करने के बाद घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हुई कि मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर कुणाल को नौकरी करने के बजाय खेती-किसानी में पिता का साथ देना पड़ा. खेती-किसानी करते-करते लगाव इतना बढ़ा कि उन्होंने राजधानी के इंदिरा गांधी कृषि विवि से ट्रेनिंग ली. इसके बाद मशरूम उत्पादन के लिए एक नया प्रोजेक्ट पेश किया, जिसमें एक ही छत के नीचे वर्मी कम्पोस्ट बनाकर मशरूम उत्पादन की नई विधि बनाई.

यहां कुणाल को मेकेनिकल इंजीनियर होने का फायदा मिला और प्रोजेक्ट का स्ट्रक्चरल डिजाइन भी उन्होंने स्वयं से तैयार किया. इस प्रोजेक्ट पर इंदिरा गांधी कृषि विवि से उन्हें फंडिंग मिली फिर यहीं से कुणाल के सपनों को पंख लगे. मशरूम उत्पादन के लिए उन्होंने दुर्ग जिले के सेलूद गांव में 1000 वर्गफीट से उत्पादन की शुरूआत की.

प्रोजेक्ट में सफलता मिली तो उन्होंने उत्पादन का दायरा बढ़ाया. धीरे-धीरे प्रसिद्धि बढ़ती गई तो गांव-गांव में मशरूम उत्पादन के लिए उन्होंने बुलाया जाने लगा. कुणाल ने बताया कि उनसे 1000 महिलाएं जो कि महिला स्व-सहायता समूह से जुड़ी है, उन्हें मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दे चुके हैं और अभी भी यह सिलसिला जारी है.

कोरोनाकाल ने बदल दी कुणाल की किस्मत

कुणाल ने बताया कि कोरोनाकाल में मशरूम उत्पादन के बाद ग्राहक नहीं मिले. लॉकडाउन की वजह से माल बेचने की समस्या आ गईं. यही से उन्हें नई तरकीब सूझी और मशरूम को सूखाकर बिस्किट, पापड़, बड़ी और आचार बनाने का तरीका निकाला. यह आसान नहीं था, लेकिन नवाचार में उन्होंने यह कर दिखाया.

राजधानी के सुंदरनगर में मशरूम को प्राकृतिक तरीके से सूखाकर बिना मैदा के बिस्किट बनाना शुरू किया और इस ब्रांड को उन्होंने अपने माता-पिता के नाम से जोड़कर बनाया. धीरे-धीरे रामांजलि ब्रांड की मांग बढ़ने लगी. इस ब्रांड को उन्होंने चेन्नई स्थित एनएबीएल लैब से भी टेस्ट कराया. यहां से सर्टिफिकेट मिलने के बाद शहरों में मार्केटिंग के लिए टीम बनाई. कोरोनाकाल से निकली तरकीब ने कई लोगों को रोजगार भी दे दिया.

मशरूम से बने बिस्किट-पापड़ दूसरे राज्यों में भी कर रहें निर्यात

मशरूम से बिस्किट, पापड़, बड़ी, आचार और अन्य उत्पाद अब सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य भी निर्यात किया जा रहा है. राजधानी के सुंदरनगर क्षेत्र में स्थित इस प्रोजेक्ट में 20 लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.

 


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