MP Investors Summit 2023: मील का पत्थर साबित होगा शिवराज सिंह चौहान का फैसला


इंदौर में निवेश, उद्योग और रोजगार के प्रचुर अवसरों से आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश का सपना बुना गया। देश के प्रमुख औद्योगिक समूहों के साथ दुनिया के प्रमुख देशों से निवेश प्रस्ताव सामने आए, कुछ ने रुचि दिखाई। इंदौर में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के आंकड़ें, जो उज्ज्वल भविष्य का सपना दिखाते हैं, लेकिन इसके साकार होने तक ऐसे कई सवालों का साया है, जिनके जवाब के बिना सपने को साकार करने में कठिनाई आ सकती है। मध्य प्रदेश में निवेश के लिए उद्योगपति भरोसा तो कर रहे हैं लेकिन उनका भरोसा टूटना नहीं चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भरोसा जीतने के लिए ही उद्योग जगत को अनुमति की अनिवार्यता से मुक्ति देने की घोषणा की है।

वरना कौन असहमति व्यक्त कर सकता है कि एक पटवारी या पंचायत सचिव भी तरक्की की भावना को दरकिनार कर जब किसी को नाको चने चबवाने पर आ जाए, तो राह आसान नहीं रह जाती। फिर निवेशकों को तो व्यवस्था के उन चौखटों को पार करना है, जहां से संतुष्टि का भाव लेकर लौटने वाले चेहरे देखना कभी आसान नहीं रहा। जिन्होंने अनुमतियों के लिए कई जोड़ी जूते घिस दिए, उनसे बेहतर कौन व्यवस्था के इस पहलू को समझ सकता है?

निवेश होगा, उद्योग लगेंगे तो बिजली, पानी सहित विभिन्न मूलभूत आवश्यकताओं सहित नीतिगत अनुमतियां लेनी होंगी, जिनकी समयसीमा की गारंटी कोई नहीं दे सकता था। सीएम का यह निर्णय निवेशकों के लिए बेहद कीमती है, तो नियम-कायदे के नाम पर फाइलों की चाल चलवाने वाले ब्यूरोक्रेसी के लिए भी बड़ा संदेश है। दुर्भाग्यवश अब तक निजी आकांक्षाओं की प्रवृत्ति पर सरकार भी कभी प्रभावी चोट नहीं पहुंचा सकी है।

सतह से नीचे की ऐसी कई हकीकत है, जिन्हें स्वीकारना या कहें गले उतारना आसान नहीं होगा। कई लोग विरोध भी कर सकते हैं, लेकिन उनके पास जवाब है कि यदि ऐसा नहीं है तो मुख्यमंत्री को मंच से कलेक्टरों को क्यों हटाना पड़ता है? निवेशकों को भरोसा दिलाया जाता है कि सिंगल विंडो सिस्टम है, लेकिन उसकी निगरानी कौन कर रहा है? कौन कह सकता है कि सिंगल विंडो सिस्टम मंशा के अनुरूप फलीभूत हो रहा है। हमारी ब्यूरोक्रेसी तो आजकल बंद केबिन में बैठकर प्रदेश चला रही है, जहां कोई विंडो नहीं है। मुख्यमंत्री का निर्णय राहत तो देगा लेकिन ऐसे में सरकार यह कदम उठा सकती है कि पांच मंत्रियों और नौकरशाहों की एक कमेटी बने, जो प्रत्येक 10 या 15 दिनों में निवेश और निवेशकों की राह में आ रही परेशानियों की निरंतर समीक्षा करे।

मुख्यमंत्री तो ख़ुद हर सोमवार को उद्योगपतियों से मिलते ही हैं, लेकिन मंत्रियों और ब्यूरोक्रेट्स को भी जवाबदेह बनाना होगा। इन्हें भी ज़िम्मेदारी देना चाहिए। एक विषय यह भी है कि निवेशक यहां समाजसेवा करने नहीं आएंगे, वह लाभ भी कमायेंगे तो उन्हें उस हिसाब से रियायत पाने का हक़ भी है। हां वे हमारे प्रदेश के युवाओं को रोजगार देंगे यही उनकी समाजसेवा है। भूमि हम बांट रहे हैं लेकिन उसमें भी निवेश की समयसीमा भी होनी चाहिए।

ऐसा न हो कि इंदौर में टीसीएस और इंफ़ोसिस ने प्रति एकड़ बीस हज़ार रोजगार देने की शर्त पर पहले प्राइम लोकेशन की ज़मीन ली फिर कुछ नहीं किया और अंततः सरकार ने ही कैबिनेट में जाकर रोजगार की शर्त को हटा लिया। सरकार का भूमि देने का फ़ैसला तो सही था लेकिन साहब लोगों ने बाद की मानीटरिंग नहीं की और अपने बचाव के लिए रास्ता निकाल लिया। यदि इस फ़ैसले पर अमल होता तो इंदौर आज आईटी हब हो गया होता।


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