OSHO मप्र के सागर में गंभीरिया स्थित ओशो हिल पर महुआ वृक्ष के नीचे आचार्य रजनीश को संबोधि की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने सागर विवि में दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। उनके ‘भगवान ओशो’ बनने का सफर यहीं से शुरु हुआ था।
डेस्क, मध्यप्रदेश के गाडरवारा के छोटे से कस्बे कुचबाड़ा में 11 दिसंबर 1931 को जन्मे एक बालक ने अपनी जन्मभूमि से निकलकर ‘भगवान ओशो’ बनने तक सफर तय किया था। उस महान दार्शनिक संत ने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई के दौरान महुआ के वृक्ष के नीचे साधना करते-करते संबोधि ‘सतोरी’ ज्ञान की प्राप्ति कर ली। यही वह क्षण था जिसने चंद्रमोहन जैन को आचार्य रजनीश बना दिया। सागर के बाद जबलपुर और फिर अमेरिका के ओरेगांव तक पहुंचने वाले इस महान इंसान ने भगवान ओशो बनने तक का सफर तय लिया। आज 11 दिसंबर को ओशो का जन्मदिवस है।
विश्व का एकमात्र विवि जहां से ‘भगवान‘ ने शिक्षा ग्रहण की थी
मप्र के सागर का डॉक्टर हरीसिंह गौर विवि कभी सागर विश्वविद्यालय हुआ करता था। साल 1955 से 57 तक यहां चंद्रमोहन जैन अर्थात आचार्य रजनीश ने दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। उस समय विवि मकरोनिया के बटालियन क्षेत्र की बैरकों में लगता था। यहीं पर आचार्य रजनीश ने दर्शनशास्त्र की पुस्तकों को इतना आत्मसात किया कि उसके बाद वे खुद दुनिया के सबसे बड़े दर्शनशास्त्री बन गए थे। वे उस दौरान बटालियन क्षेत्र में स्थिल एक पहाड़ी पर ध्यान-साधना में लीन रहते थे। इस स्थान को संरक्षित करने के बजाय कतिपय लोग नष्ट करने पर आमादा रहे हैं।
महुआ के वृक्ष के नीचे साधना के दौरान ‘सतोरी‘ ज्ञान प्राप्त हुआ था
मकरोनिया में गंभीरिया जिसे आज बटालियन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है यहां की पहाड़ी पर एक स्थान को ओशो हिल के नाम से पहचाना जाता है। यहां मौजूद शिलालेख के अनुसार आचार्य रजनीश को साधना के दौरान संबोधि ज्ञान अर्थात ‘सतोरी’ प्राप्त हुई थी। इसमें उल्लेख है कि 12 फरवरी 1956 की रात ओशो महुआ के पेड़ जिसे बोधिवृक्ष कहा जाता है, उसके नीचे ध्यानमग्न थे। अचानक उनकी देह, चेतना से अलग हो गई। शरीर धरती पर गिर गया, उन्होंने देखा उनकी चेतना शरीर से अलग है और चांदी के समान प्रकाशमय तार से जुड़ी है। इस महान घटना को ‘सतोरी’ कहा जाता है।
ओशो की छोटी बहन की सागर में ससुराल, संजो रखी हैं उनकी स्मृतियां
आचार्य रजनीश का सागर से एक और गहरा नाता है। उनकी छोटी बहन नीरु का विवाह सागर में हुआ था। व्यावसायी कैलाश सिंघई उनके बहनोई हैं। बहन-बहनोई ने ओशो से दीक्षा भी ली थी। बहन को उन्होंने प्रेम नीरु दीक्षा नाम दिया था तो बहनोई कैलाश सिंघई स्वामी अमित चैतन्य दीक्षा नाम से पहचाने जाते हैं। दोनों ही ओशो को अपने आध्यात्मिक गुरु के रुप में मानते हैं। प्रेमनीरु बताती हैं, 1969 में उनकी शादी हुई थी। ओशो के साथ परिवार में गुजरा समय और उनकी यादें आज भी उनके जेहन में बरकरार हैं। कैलाश सिंघई बताते हैं कि ओशो ने योग, ध्यान और समाधि की नई परिभाषाएं दी थीं, जो हर व्यक्ति के लिए सुलभ हो सकती हैं। इसी सागर शहर से आचार्य रजनीश के इंसान से भगवान बनने का सफर शुरु हुआ था। उन्होंने सागर को अपनी शिक्षास्थली के साथ कर्मस्थली भी बनाया था।
भारत में ओशो अनुयायियों के लिए पुणे में 1974 में आश्रम की स्थापना हुई थी
ओशो ने आध्यात्मिक,, दार्शनिक संत के रुप में करीब एक दशक तक देश के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं की थी। बाद में उन्होंने 1974 में पुणे में आश्रम की स्थापना की थी, जिसे आज ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रेसार्ट के नाम से पहचाना जाता है। इंडिया के अंदर ओशो अनुयायियों का यह सबसे बड़ा संस्थान माना जाता है। पुणे के कोरेगांव स्थित यह आश्रम करीब 28 एकड़ में फैला हुआ है। ओशो द्वारा अपने विचारों का प्रचार मुम्बई में प्रारंभ था, उसके बाद ही इस ओशो आश्रम की स्थापना की गई थी। यही वह समय था, जब आचार्य रजनीश को उनके अनुयायियों ने भगवान ओशो का संबोधन देना प्रारंभ किया था।