बाबू भैया हो या राधेश्याम तिवारी…हर किरदार में परेश रावल ने जान फूंक दी. एक्टर उन कलाकरों की लिस्ट में शामिल है, जो अपने किरदार से एक्सपेरिमेंट करने के लिए जाने जाते हैं. चाहे किरदार निगेटिव हो, पॉजिटिव हो या कॉमेडी…दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. एक्टर की पहली फिल्म गुजराती ‘नसीब नी बलिहारी’ थी, जिसके बाद 1985 में आई सनी देओल की फिल्म ‘अर्जुन’ के साथ हिंदी सिनेमा में कदम रखा था.
नहीं बनना था एक्टर
30 मई, 1950 को मुंबई में जन्मे परेश रावल दमदार अभिनय के कारण लाखों दिलों पर राज करते हैं, मगर एक्टर कभी एक्टिंग में करियर नहीं बनान चाहते थे. बचपन से ही उन्होंने सिविल इंजीनियर बनने का सपना देखा था. पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी के लिए हाथ पैर मारे, तो काफी परेशानी आई. जिसके बाद उन्होंने नौकरी की तलाश छोड़ दी और एक्टिंग की तरफ रुख कर लिया. अभिनय ने उन्हें शून्य से शिखर तक पहुंचा दिया.
इन फिल्मों में निभाया आइकॉनिक किरदार
परेश रावल के व्यक्तित्व के कई रंग हैं, जो कि हर रंग में फिट बैठते हैं. 1994 में आई केतन मेहता की फिल्म ‘सरदार’ में वह वल्लभ भाई पटेल की एक यादगार भूमिका आज भी लोगों के जहन में हैं.
अंदाज अपना अपना में डबल रोल, जुदाई के हसमुख लाल, हेरा फेरी के बाबू राव, हंगामा के मल्टी मिलियनर राधेश्याम तिवारी, संजू में सुनील दत्त का रोल, ओह माय गॉड फिल्म के किरदार से उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया.
बाबू भैया के किरदार से छुड़ाना चाहते है पीछा
परेश रावल को सबसे ज्यादा नेम और फेम फिल्म हेरा-फेरी ने दी थी. इस फिल्म में परेश रावल ने बाबू भैया का रोल अदा किया था. खास से लेकर आम तक सभी लोग इस किरदार के जबरा फैन हैं. लेकिन परेश रावल को खुद ये करेक्टर पसंद नहीं है. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, ‘मैं अपने सभी किरदारों से प्यार करता हूं. लेकिन एक करेक्टर है जिसके बारे में सुनसुनकर मैं बोर हो गया हूं. मैं बाबू भइया का, इस किरदार से पीछा छुड़ाना चाहता हूं.’