हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2080 की शुरुआत 22 मार्च 2023 से होने जा रही है. हर साल चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है. इसी दिन से नौ दिनों का नवरात्रि पर्व भी शुरू हो जाता है. माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी. जिस तरह अंग्रेजी कैलेंडर में 12 महीने होते हैं, उसी तरह हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) यानी हिंदू कैलेंडर (Hindu Calendar) में भी 12 महीने होते हैं. हालांकि इनके नाम अंग्रेजी कैलेंडर से अलग होते हैं. हिंदू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है. लेकिन आने वाले साल विक्रम संवत 2080 में 12 नहीं, 13 महीने होंगे. जानिए आने वाले साल में 13वें महीने का क्या है माजरा.
ये है वजह
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग माने जाते हैं. ये पांच अंग हैं- वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण. इनकी गणना करके हिंदू कैलेंडर को तैयार किया जाता है. इसीलिए इसे पंचांग कहा जाता है. पंचांग चंद्र वर्ष पर आधारित होता है. एक चंद्र वर्ष में 354 से 360 दिन होते हैं. तिथियों के घटने और बढ़ने की वजह से महीने में और साल में दिन कम और ज्यादा होते हैं. आमतौर पर हर साल करीब 5 से 11 दिनों का अंतर आता है और हर तीन साल में ये अंतर करीब एक महीने के बराबर हो जाता है. इस स्थिति में साल में एक माह अतिरिक्त हो जाता है. अतिरिक्त माह को अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तममास के नाम से जाना जाता है. नए साल में भी एक अधिक मास होने के कारण साल 12 की बजाय 13 महीने का होगा.
60 दिनों का होगा सावन का महीना
हिंदू पंचांग के आधार पर इस साल सावन का महीना (Shravan Month 2023) 30 दिनों की बजाय 60 दिनों का होगा क्योंकि उसमें अधिक मास भी जुड़ जाएगा. इस साल सावन का महीना 4 जुलाई 2023 को शुरू होगा और 31 अगस्त 2023 को खत्म होगा. अधिक मास को शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है. अधिक मास भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इसमें किसी भी तरह का शुभ काम करना वर्जित होता है. इस महीने में ग्रह शांति, दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा आदि करना अच्छा माना जाता है. यानी इस साल सावन के महीने में आप शिव जी के साथ नारायण की भी उपासना करेंगे.
पंचांग के 12 महीनों का क्रम
चैत्र माह: 22 मार्च 2023 – 6 अप्रैल 2023
वैशाख माह: 7 अप्रैल 2023 – 5 मई 2023
ज्येष्ठ माह: 6 मई 2023 – 4 जून 2023
आषाढ़ माह: 5 जून 2023 – 3 जुलाई 2023
श्रावण माह: 4 जुलाई 2023 – 31 अगस्त 2023
(सावन में 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023 तक अधिक मास होगा)
भाद्रपद माह: 1 सितंबर 2023 – 29 सितंबर 2023
आश्विन माह: 30 सितंबर 2023 – 28 अक्टूबर 2023
कार्तिक माह: 29 अक्टूबर 2023 – 27 नवंबर 2023
मार्गशीर्ष माह: 28 नवंबर 2023 – 26 दिसंबर 2023
पौष माह: 27 दिसंबर 2023 – 25 जनवरी 2024
माघ माह: 26 जनवरी 2024 – 24 फरवरी 2024
फाल्गुन माह: 25 फरवरी 2024 – 25 मार्च 2024
क्या है संवत इसे भी समझें
भारतीय संवत मानव श्वास से आरम्भ होता है। छः श्वास से एक विनाड़ी, 10 विनाड़ी यानी साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है। साठ नाड़ियां एक दिवस (दिन-रात का युगल) निर्मित करती हैं। तीस दिवसों का एक माह होता है। एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से निर्मित होता है। सूर्य के राशि परिवर्तन से एक सौर मास आरंभ होता है और राशि प्रस्थान से माह पूर्ण हो जाता है। द्वादश माह का एक संवत होता है और एक संवत देवताओं का एक दिन कहलाता है।
जम्बूद्वीप यानि भारतीय उपमहाद्वीप में यूं तो कई संवत प्रचलित रहे हैं, लेकिन आज दो संवत अधिक प्रख्यात हैं, पहला विक्रम संवत, दूसरा शक संवत। विक्रम संवत ईसा से लगभग पौने 58 साल पहले आरंभ हुआ। समय को गिनने की इस पद्धति का आरंभ सम्राट विक्रमादित्य ने किया था। बृहत्संहिता की व्याख्या करते हुए 966 ईसवी में ‘उत्पल’ ने लिखा कि शक साम्राज्य को जब सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया, तब नया संवत अस्तित्व में आया, जिसे आज विक्रमी संवत कहा जाता है।
विक्रमी संवत का आरंभ
शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में विजय स्तंभ के रूप में विक्रम संवत स्थापित हुआ। आरंभ में इस संवत को कृत संवत के नाम से जाना गया। कालांतर में यह मालव संवत के रूप में भी लोकप्रिय हुआ। बाद में जब विक्रमादित्य राष्ट्र प्रेम प्रतीक चिह्न के रूप में स्थापित हुए, तब मालव संवत ख़ामोशी से, कई सुधारों को स्वयं में समेटते हुए, विक्रम संवत के रूप में तब्दील हो गया। लेकिन शकों का शक संवत् अब तक भारत में मान्य है। महाकवि कालिदास इन्हीं सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्न थे।
दिन, सप्ताह, माह का विभाजन
बारह महीने के एक वर्ष एवं सात दिन के सप्ताह का आगाज विक्रम संवत से ही आरंभ हुआ। विक्रम संवत में दिन, सप्ताह और मास की गणना सूर्य व चंद्रमा की गति पर निश्चित की गई। यह काल गणना अंग्रेजी कैलेंडर से बहुत आधुनिक और विकसित प्रतीत होती है। इसमें सूर्य, चंद्रमा के साथ अन्य ग्रहों को तो जोड़ा ही गया, साथ ही आकाशगंगा के तारों के समूहों को भी शामिल किया गया, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। एक नक्षत्र चार तारा समूहों के मेल से निर्मित होता है, जिन्हें नक्षत्रों के चरण के रूप में जाना जाता है।
संक्रांति क्या है?
कुल नक्षत्रों की संख्या सत्ताईस मानी गयी है, जिनमें अट्ठाईसवें नक्षत्र अभिजीत को शुमार नहीं किया गया। सवा दो नक्षत्रों के समूहों को एक राशि माना गया। इस प्रकार कुल बारह राशियां वजूद में आईं, जिन्हें बारह सौर महीनों में शामिल किया गया। पूर्णिमा पर चंद्रमा जिस नक्षत्र में गतिशील होता है, उसके अनुसार महीनों का विभाजन और नामकरण हुआ है। सूर्य जब नई राशि में प्रविष्ट होता है तो उस दिवस को संक्रांति कहते हैं।
मलमास और सौर चंद्र वर्ष
चंद्र वर्ष सूर्य वर्ष से ग्यारह दिन, तीन घाटी और अड़तालीस पल कम है। हर तीन साल में एक एक मास का योग कर दिया जाता है, जिसे बोलचाल में अधिक माह, मलमास या पुरुषोत्तम माह कहा जाता है। इस तरह मलमास को जोड़कर सूर्य और चंद्र मास को बराबर किया जाता है।
शक संवत का इतिहास
शक संवत् का आरंभ यूं तो ईसा से लगभग अठहत्तर वर्ष पहले हुआ। लेकिन इसका अस्पष्ट स्वरूप ईसा के पांच सौ साल पहले से ही मिलने लगा था। वराहमिहिर ने इसे शक-काल और कहीं कहीं शक-भूपकाल कहा है। शुरुआती कालखंड में लगभग समस्त ज्योतिषीय गणना और ज्योतिषीय ग्रंथों में शक संवत ही प्रयुक्त होता था। शक संवत के बारे में धारणा ये है कि यह उजैन के सम्राट ‘चेष्टन’ के अथक प्रयास से आरंभ हुआ। इसके मूल में सम्राट कनिष्क की बड़ी भूमिका मानी जाती है। शक संवत को ‘शालिवाहन’ भी कहा जाता है। शक संवत के शालिवाहन नाम का उल्लेख तेरहवीं से चौदहवीं सदी के शिलालेखों में मिलता है।